“BRICS मुद्रा: क्या अमेरिका सच में डरा हुआ है? जानें सारी सच्चाई!” अमेरिकि राष्ट्रपाति डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीती की जोरदार वकालत कर रहे है। यदि ब्रिक्स मुद्रा चलन में आती है, तो ट्रंप को लगता है की विश्व बाजार में डॉलर के एकाधिकार को झटका लगेगा और उन्होंने चेतावानी दी है की वह ब्रिक्स देशों के खिलाप 100% टैक्स लगाएँग। हालाँकि, विशेषग्न कह रहे है की भले हि ब्रिक्स मुद्रा पर कई वर्षो से चर्चा चल रही है, लेकिन फिलहाल यह संभव नहीं है.
अमेरिका के राष्ट्रपति के रुप में दूसरी बार कार्यभर संभालते ही डोनाल्ड ट्रंप एक-एक कर अपने प्रमुख पदों की घोषणा कर रहे है। जबकी अमेरिका में जन्मे बच्चों के लिए नागरिकता का मुद्दा अभी भी चर्चा में है, उन्होंने ब्रिक्स मुद्रा के उपयोग के प्रयास के खिलाफ चेतावानी दी। ब्रिक्स देशों ने घोषणा की है की अगर ये देश वैश्विक बाजार में डालर के स्थान पर किसी अन्य मुद्रा का उपयोग करते है तो उन पर 100% टैक्स लगाया जायेगा। ट्रंप ने दिसंबर 2024 में राष्ट्रपती चुने जाने के बाद यही बात कही थी। हमे इन देशों से यह कहने की जरूरत है की वे ब्रिक्स मुद्रा को लागू नही करेंगे और वे मजबूत अमेरिकी डालर के विकल्प के रुप में किसी भी मुद्रा का समर्थन नहीं करेंगे ।अन्यथा उन्हे 100% टैक्स का सामना करना पड़ेगा और अमेरिका के अद्भुत बाजार में अपना माल बेचने का अवसर खोना पड़ेगा ।
अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में डॉलर का दबदबा है और 90 प्रतिशत व्यापारिक लेन-देन डालर में होता है। कुछ समय पहले तक तेल का 100% व्यापार डालर में होता था। 2023 तक,पांच में से एक व्यापारी गैर- डॉलर मुद्रा का उपयोग करके तेल का व्यापार करेगा। “BRICS मुद्रा: क्या अमेरिका सच में डरा हुआ है? जानें सारी सच्चाई!”
डॉलर के प्रभाव को कम करने का लक्ष:
2022 में युकरेन पर जैसे हि रूस ने युद्ध की घोषणा की, अमेरिका और उसके सहयगियों ने न केवल रूस को अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (स्विफ्ट) से बाहर कर दिया, बल्कि उस पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए (2012 में ईरान को भी स्विफ्ट से बाहर कर दिया गया था )। इस विकास के बाद ,डॉलर के लिए वैकल्पिक भुगतान प्रणाली खोजने का दबाव तेज हो गया । वैकल्पिक मुद्रा प्रस्ताव के पीछे का विचार डॉलर के वर्चस्व को कम कम करने के साथ -साथ अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों से निपटना है। https://tezasnews.com/
2022 में 14 वे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक नाई वैश्विक मुद्रा की आवश्यकता का उल्लेख किया और कहा की वह सभी बाजार भागीदारों के साथ इस पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं। 2023 में जोहांसबर्ग में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में बोलने वाले ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लुला दा सिलवा ने भी कहा की ब्रिक्स मुद्रा के उपयोग से न केवल भुगतान संभावनाएं बड़ेगी बल्कि हमारे आर्थिक हितों की भी रक्षा होगी। “BRICS मुद्रा: क्या अमेरिका सच में डरा हुआ है? जानें सारी सच्चाई!”
अक्टूबर 2024 में रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रुसी राष्ट्रपती व्लादिमीर पुतिन ने डॉलर की सम्प्रभूता के खिलाफ सीधे तौर पर हमला बोला। डॉलर का इस्तेमाल एक हथियार के रुप में किया जा रहा है। ऐसा करना बहुत बड़ी गलती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसी बात को दोहराते हुए कहा भारत सदस्य देशों के आर्थिक एकीकरण में रुचि रखता है. स्थानिय मुद्राओं के माध्यम से व्यापार करने और सीमा पार से सुचारु भुगतान से हमारा आर्थिक सहयोग मजबूत होगा,उन्होंने कहा।
ब्रिक्स क्यों मायने रखता है?: वैश्विक बाज़ारो के संदर्भ में
अमेरिका जितना महत्वपूर्ण है, ब्रिक्स देश भी उतने ही महत्वपूर्ण है । ब्राज़ील, रूस, भारत और चिन ने 2006 में ” ब्रिक ” संगठन का गठन किया। चार साल बाद दक्षीण अफ्रीका इसमे शामिल हुआ,जो ‘ ब्रिक्स ‘ के नाम से जाना गया। साल दर साल ब्रिक्स की सदस्यता लेने और चाहने वाले देशों की संख्या बढ़ती जा रही है । वर्तमान में 10 देश इसके सदस्य हैं और आर्थिक एवं राजनितिक शक्ति के रुप में उभरने का प्रयास कर रहे हैं । दुनिया की 40% आबादी इन देशों में रहती है और वैश्विक सकल घरेलु उत्पाद में इनका योगदान एक तिहाई हैं । इन देशों का इरादा वैश्विक स्तर पर अमेरिका और पश्चिम के शक्तिशाली देशों के लिए एक वैकल्पिक शक्ति तैयार करने का है। “BRICS मुद्रा: क्या अमेरिका सच में डरा हुआ है? जानें सारी सच्चाई!”
आम सहमति आसान नही है
रुस जो अमेरिकी प्रतिबंधो का सामना कर रहा है, और चिन जो दुनिया के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की स्थिती के लिए अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धी कर रहा है, वैकल्पिक मुद्रा की पुरजोर वकालत कर रहे है। ब्रिक्स मुद्रा अवधारण अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में हैं । सभी सदस्य देशों को नई मुद्रा का उपयोग करने के लिए सहमत होना होगा। यह इतना आसान नहीं है. इसलिए ब्रिक्स मुद्रा को लागू होने में काफी समय लग सकता है ।
चीन और रूस के अलावा ब्रिक्स देशों के भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं। इसलिए ये देश अचानक से अमेरिका के खिलाफ रवैया नही अपना सकते. साथ हि इन सभी देशों की अर्थिक स्थितियां भी अलग – अलग है। इन देशों के बीच व्यापार घाटा गंभीर है । इन देशों के मौद्रिक, व्यापार और राजनितिक नीतियों में मतभेद हैं । देशों की मुद्राओं की विनीमय दरों मे भी अंतर होता है । भारत और चीन सहित कुछ सदस्य देशों के बीच विश्वास की कमी भी है। इन सभी चुनौतियों से पार पाने के बाद हि वैकल्पिक मुद्रा की अवधारण हकीकत बन सकती है। लेकिन विशेष सलाहाकर का कहना है की यह इतना आसान नहीं है.
डॉलर पर क्या असर होगा ?
वैकल्पिक मुद्रा अभी भी प्रस्ताव चरण में है। फिर भी अमेरिकि राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर जमकर हमला बोला है.क्योंकि, ब्रिक्स वैश्विक देशों के प्रभावशाली समूह में से एक है। अमेरिका पर निर्भर कई देश इसके सदस्य है. यदि ब्रिक्स देश वैकल्पिक मुद्राओं में व्यापार करना शुरु करते है, तो डॉलर की वैश्विक मांग कम हो जाएगी. विश्व मुद्राओं के मुकाबले डॉलर का मूल्य कम हो जाएगा । इससे न सिर्फ अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा , बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दुनिया के बड़े भाई की पकड़ भी ढीली हो जाएगी । उस स्थिति में चीन विश्व स्तर पर एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभर सकता है। अमेरिका को चिंता है कि दुनिया के घटनाक्रम में चीन रूस और भारत जैसे ब्रिक्स देशों प्रभाव कम हो जाएगा .
भारत की स्थिति क्या है
यह भी कहा जा रहा है कि अगर वैकल्पिक मुद्रा लागू होती है तो इसका न सिर्फ अमेरिका बल्कि डॉलर पर निर्भर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है ।
भारत डॉलर की वैकल्पिक मुद्रा को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं दिख रहा है। उसने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि उसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार में डॉलर के उपयोग को पूरी तरह से रोकना या मौजूदा डॉलर प्रणाली को प्रतिस्थापित करना नहीं है। विदेश मंत्री जयशंकर ने पिछले साल अक्टूबर में वॉशिंगटन में आयोजित एक विचार मंथन कार्यक्रम में इस मुद्दे पर भारत का रुख रखा था। हालांकि भारत रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने की कोशिश कर रहा है। इसका इरादा अपने अंतरराष्ट्रीय कारोबार में डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए रुपए का इस्तेमाल करने का है। आने वाले समय से भारत भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रुपए का इस्तेमाल शुरू कर देगा .
डॉलर की कमी का सामना करने वाले देशों में, अमेरिका नाकाबंदी द्वारा लक्षित देशों के साथ सुचारू व्यापार की सुविधा के लिए रुपए का वैकल्पिक मुद्रा में लेनदेन करना आवश्यक है। भारत का मानना है कि भविष्य में दुनिया की प्रभावशाली मुद्राओं के सामने आने वाली चुनौतियां से निपटने और देश के मौद्रिक हितों की रक्षा के लिए रुपए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की जरूरत है।
भारत पहले से ही पड़ोसी देश भूटान श्रीलंका और रूस समेत कई देशों के साथ रुपए में कारोबार कर रहा है । यूक्रेन पर युद्ध को लेकर अमेरिका द्वारा रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बाद अमेरिका के विरोध के बावजूद वह रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीद रहा है। इस लेनदेन के लिए भुगतान रुपए में किया जाता है । भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशियों को भारत में वास्को खाते ( एक बैंक द्वारा दूसरे बैंक की ओर से रखें गए खाते ) खोलना की अनुमति दी है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय लेनदेन का भुगतान रुपए में कर सके । रूस ब्रिटेन इजरायल जर्मनी समेत 22 देशों के भारत में वास्को खाते है।
रूस और चीन जैसे ब्रिक्स सदस्य देशों में से भारत के रूस के साथ अच्छे संबंध है, लेकिन चीन के साथ उसके संबंध इतने ही है । ब्रिक्स देशों में सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति होने के नाते चीन किसी भी मामले में दूसरे देशों को प्रभावित कर सकता है। वह वैकल्पिक मुद्रा के मुद्दे को भी प्रभावित करने की कोशिश कर सकता है, और अपनी मुद्रा युवान को वैकल्पिक मुद्रा बनाने की कोशिश कर सकता है । भारत इसे किसी भी कारण से स्वीकार नहीं करता. इसलिए ब्रिक्स मुद्रा को लेकर उत्साहित होने की संभावना कम है ऐसा वित्तीय विशेष सलाहकर का विश्लेषण है